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ये समाज हमें सुरक्षा की गारंटी नहीं देता

social issue
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वो घर से निकलती हैं, तो मोहल्‍ले के शोहदों की आंखें फैल जाती हैं…..बाजार, बस, ऑटो, सड़क पर अनगिनत घिनौने लिजलिजे हाथ उसे छूना चाहते हैं….. हर किसी के लिए वो बस मनोरंजन का साधन है. ऑफिस में वह साथ काम करने वाले सहकर्मियों के लिए गॉसिपिंग का शानदार मसाला है. उसके कपड़ों से लेकर दूसरे लोगों से उसके घुल-मिलकर बातें करने मात्र से उस पर बदचलन होने का ठप्‍पा लगा दिया जाता है. हाल ही में गुवाहाटी की एक लड़की के साथ बदसलूकी किए जाने का मामला सामने आया है. ऐसे देश में जहां महिलाएं शीर्ष राजनैतिक पदों पर बैठकर देश की सत्‍ता अपने हाथ में लिए हुए हैं, वहां इस तरह की घटनाओं का लगातार सामने आना वाकई शर्मनाक है. इससे भी ज्‍यादा दुखद पहलू यह है, कि जब भी लड़कियां इस तरह की घटनाओं का विरोध करने का साहस करती हैं, तो उनके खुद के मां-बाप व परिवारजन समाज की दुहाई देकर उन्‍हें चुप रहने का वास्‍ता दे देते हैं. हमारा समाज महिलाओं को कहीं भी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकता. जब भी इस तरह के मामले सामने आते हैं तो कहा जाता है कि लड़कियों के देर शाम घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा देनी चाहिए, लेकिन क्‍या दिन के उजाले में महिलाएं सुरक्षित हैं. हर लड़की को कभी न कभी यह सब झेलना ही होता है. आज से कुछ साल पहले की बात है. उन दिनों मैं कॉलेज में पढ़ा करती थी. एक दिन घर आते समय एक अधेड़ आदमी मेरे बगल से कुछ कमेंट करते हुए गुजरा, वो आदमी बाइक चला रहा था और यह सब इतनी जल्‍दी घटा कि मैं उस आदमी को ढंग से देख नहीं पाई. रास्‍ते में एक टर्न से वो दोबारा मुड़ा और फिर कमेंट करता हुआ निकल गया. इस बार मैंने उसकी बाइक का नंबर नोट कर लिया. अपने पत्रकार साथियों को मैंने यह बात बताई और उसके बाद उस बाइक नंबर की तलाश शुरु कर दी. तीसरे दिन उस आदमी का पता चल गया. उस आदमी को हमने आखिर पकड़ ही लिया और इसके बाद पुलिस बुलाई गई. थाने में सबके सामने मैंने चप्‍पल से उस आदमी को पीटा, लेकिन मामला यहीं तक सीमित नहीं रहा. बाद में पता चला कि वो आदमी ग्रामप्रधान था, यही नहीं मुझसे ज्‍यादा उम्र के उसके खुद के बच्‍चे थे. फिर भी उसे इस तरह की हरकत करते हुए शर्म नहीं आई. देर शाम उसके गांव वालों ने थाने को घेर लिया. मेरे घर से कुछ ही दूर उसका मोहल्‍ला था. उन दिनों घर पर केवल मैं और मेरे पिता जी थे, बाकी लोग गांव गए थे. मैंने अपनी मां को फोन कर इस बारे में बताया तो वह घबरा गईं. पिता जी ने कहा ‘आज तक हमारे परिवार में किसी ने थाने की शक्‍ल नहीं देखी. हम गरीब लोग हैं, सब हमारा जीना मुश्किल कर देंगे.’ ऐसा हुआ भी…. मेरा सड़क पर अकेले चलना तक मुश्किल हो गया था. ऐसे में मुझे कालेज जाने तक के लिए भी किसी न किसी की मदद लेनी पड़ती थी. जगह-जगह से इस मामले को लेकर प्रेशर बनाया जा रहा था. वो आदमी पहले भी कई महिलाओं के साथ इस तरह की हरकत कर चुका था, और मैं जानती थी कि अगर मैं इसका विरोध नहीं करूंगी तो यह सब यूं ही चलता रहेगा. उस आदमी की बीवी और मां उसे गलत मानने के लिए तैयार नहीं थीं. जगह-जगह पंचायतें होतीं और मुझे खूब कोसा जाता था. यही नहीं मेरे कुछ अपने साथी भी भीतरखाने मेरा ही विरोध कर रहे थे, सबके अपने अपने स्‍वार्थ जुड़े हुए थे. मेरी बहनों को भी परेशान किया गया. देर शाम उस आदमी को छोड़ दिया गया, लेकिन प्रॉब्‍लम्‍स यहीं खत्‍म नहीं हुईं. इस घटना के कुछ टाइम बाद मैंने अपना होमटाउन छोड़ दिया, लेकिन इसे मैं आज तक नहीं भूल पाईं हूं. उस समय मैं हमेशा डर के साए में रहा करती थी. मेरी वजह से मेरे घरवालों को भी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. मोहल्‍ले में सबको गॉसिपिंग के लिए मसाला मिल गया था. घर से ऑफिस जाने के लिए मुझे किसी न किसी पर डिपेंड रहना पड़ता था. मैं समझ नहीं पा रही थी कि मेरी गलती क्‍या है. उस अधेड़ आदमी द्वारा अपनी गलती स्‍वीकार कर लिए जाने के बावजूद ऐसे लोगों की कमी नहीं थी जो मुझे ही गलत साबित करने में जुटे हुए थे. इसके बाद भी जिंदगी आसान नहीं हुई, लेकिन मैं समझ चुकी थी कि ऐसे घटिया लोग और उन्‍हें समर्थन देने वाले कदम-कदम पर मिलेंगे. ऐसे में हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कौन क्‍या कहेगा और क्‍या नहीं…. क्‍योंकि यह हमारी अस्मिता का सवाल है. अगर हम खुद की इज्‍जत नहीं करेंगे तो हर दूसरा आदमी हमें यूं ही जलील करना अपना हक समझने लगेगा. मां बाप को भी समझना होगा कि समाज, नैतिकता की दुहाई देने की बजाय अपनी बच्चियों को आत्‍मसम्‍मान से जीना सीखाएं ताकि वो समाज के इन दुशासनों का नाश कर सकें.

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